Best 100 ghazal in Hindi heart touching hindi ghazal

Abha Chandra Ghazals in Hindi

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दुनियादारी की रस्मों से कुछ यूं जकड़े बैठे हैं 
 पकडाई थी उंगली जिनको वो पहुंचा पकड़े बैठे है 

           आँखें मेरी भी गीली हो जाती है माँ 
 तू बहुत ज्यादा याद आती है माँ 
 चली थी तो खुश थी, डांट नहीं सुनूंगी अब 
 प्यास मन की दो बोल को तरस जाती है माँ 
 कहती थी मैं इतना काम न किया कर 
 अब थकन से नींद नहीं आती है माँ 
 पास होती तो गोद में सर छुपा लेती 
 ऑंखें पानी को ख़ुद में समा लेती हैं माँ 
 शैतान लड़की जो खिझाया करती थी 
 बदल कर तुझ सी हो गयी है माँ 

        
तपती आंखो में कहां जीते हैं ख्वाब 
 धूप की जलन तो कहां पलते हैं ख्वाब 
 ख्वाहिशों की नर्म छांव में बैठे बैठे 
 आस टूट जाती है तो टूटते हैं ख्वाब 
 रूई के फाहे से हल्के हल्के गाले 
 आंधी चलती है तो उड़ते है ख्वाब 
 वो दे रहा है बातों बातों में वादे 
 धोखा देने को मुझे छलते हैं ख्वाब 
 सोच लिया था “आभा” मैने पहले से 
 ज़िंदा रहने को यहां कब मिलते है ख्वाब
ghazals in hindi

रोज़ मैं जाने कहाँ ग़ुम हो जाती हूँ
 खुद से निकल कर खुद में खो जाती हूँ
 लफ्ज़ घूमते रहते हैं मेरे चारों तरफ
 एक भंवर में फँसी ज़िन्दगी सी होती हूँ
 चाहती तो हूँ कि कोई बुलाये कभी
 लेकिन कोई आवाज़ नहीं सुनती हूँ
 हालत ज़िंदगी के कभी बदले तो सही
 कहीं कोई हमनवा भी नहीं देखती हूँ
 सारी दुनिया में है भीड़ बहुत लोगों क़ी
 पर जो अपना सा हो वो कहाँ देख पाती हूँ .

       वो नन्हा सा इक पल जाने
 कैसे छल गया मुझको
 लाख बचाया लाख सम्हाला
 बेकल कर दिया मुझको
 पल पल छलती जाये आस
 बुलाये हर पल मुझको
 ऐसी कोई शाम ढले कल
 और ले आये तुझको
 तु हो साथ मेरे बस और
 क्या लेना मुझको
 महकी सी ये हवा बहके
 मैं पा जाऊं तुझको
hindi ghazals


    गर आंखो को अश्क पीना आ गया होता
 मेरी दीवानगी को भी जीना आ गया होता

 भूल जाते हम भी हर इक गम अपना
 गर नफरत छुपाने का करीना आ गया होता

 जरूरत क्या थी हमको मांगते हम दवा को
 खुद को अपना ज़ख्म सीना आ गया होता

 छुपा रहता है वो मेरी निगाहों से वरना
 भरी बरसात में हमको पसीना आ गया होता

 बताऊं क्या के अब क्या हाल हो मेरा
 अगर किस्मत में वो नगीना आ गया होता

    हाले ऐ दिल अपना कभी सुनाओ भी
 कभी हमसे मिलो खुद को मिलवाओ भी

 यहाँ हर शख़्स सलीब पर है अकेला
 अपनी तन्हाइयों को गुनगुनाओ भी

 हमारा हाल तो क़तरा क़तरा था बिखरा
 जो समेट सको तो हमको उठाओ भी

 हर रोज़ मैं खुला छोड़ती हूँ दरवाज़ा
 ग़र समय मिले तो खटखटाओ भी

 पड़े है जंग के निशान रिश्तों में आभा
 अपनी मुस्कराहटों से इसे मिटाओ भी



  सिर पर भारी बोझ उठाये चलता है
 जिससे सारे कुनबे का पेट पलता है

 आंगन से बाहर नहीं निकल पाती
 बेटी का आंचल ना होना खलता है

 दिन भर कड़ी धूप में वो बदन जलाये
 तब कहीं घर का चूल्हा जलता है

 कोई मेहमां गर कभी आ जाये
 रोटियां बांट कर खुद को छलता है

 और अब “आभा” क्या कहूं क्या मिले
 घर से ना निकलूं तो कल नहीं मिलता है..


    प्रार्थनायें क्या होतीं हैं
 मन का विश्वास होतीं हैं
 बंधती हुयी आस होतीं हैं
 कमल के पत्ते पे पड़ी ओस
 बूंद सी साफ होतीं हैं
 ऊषा किरण छूकर बहल
 जाये,वो प्यास होतीं हैं
 जाड़े की गुनगुनी धूप
 सी सहला जातीं हैं
 मां की मीठी लोरी सी
 बहला जातीं हैं
 वो प्रार्थना ही तो हैं
 जो पूर्ण समर्पण हैं
 और
 जीवन जीने की शक्ति
 बन जातीं हैं..
hindi love shayari


    हाले ऐ दिल अपना कभी सुनाओ भी
 कभी हमसे मिलो खुद को मिलवाओ भी

 यहाँ हर शख़्स सलीब पर है अकेला
 अपनी तन्हाइयों को गुनगुनाओ भी

 हमारा हाल तो क़तरा क़तरा था बिखरा
 जो समेट सको तो हमको उठाओ भी

 हर रोज़ मैं खुला छोड़ती हूँ दरवाज़ा
 ग़र समय मिले तो खटखटाओ भी

 पड़े है जंग के निशान रिश्तों में आभा
 अपनी मुस्कराहटों से इसे मिटाओ भी

       
यूँ तो वक्त बहुत है पर
 एक लम्हे को तरसते है हम
 वैसे तो खिलखिलाते रहते हैं पर
 एक हंसी को तरसते हैं हम
 यादें तो बहुत हैं ज़िन्दगी में पर
 उन्हें जीने को तरसते है हम
 साथ गुज़ारा वक्त है पर
 उस रस्ते पे चलने को तरसते हैं हम
 आसमान है मंज़िलें हमारी पर
 उनका छोर छूने को तरसते हैं हम
 मुस्कान तुम्हारी बिखरी होगी हर सू पर
 एक झलक पाने को तरसते है हम

       
बहुत ढूंढा मैने पर अब नही मिलते हैं
 वो पुराने दिन जो मीलों लम्बे होते थे

 जिन दिनों में वक्त काटने के तरीके खोजते थे
 और रातें मीलों तक फैली हुआ करती थी

 दोस्तों के दोस्त भी जान से ज्यादा होते थे
 काम भी सबके बस अपने नाम होते थे

 रातें लम्बी लम्बी और लम्बी हो जाती थी
 दोपहर तक नींदे पूरी नहीं हो पाती थी


          मेरी खिड़की पर जा बैठा
 अजनबी सा ये सूनापन
 घेर लेता है अक्सर ही
 बेलौस खनकती हंसी में
 समय की आती जाती लहरों
 सा बहाता है कभी भंवर में
 आसपास के शोर में कहीं
 खामोशी की रीती आवाज़ में
 उचक के लपक लेता है
 यादों के ऊंचे पहाड़ से
 सोचती हूं कि मैं छिप जाऊं
 कहीं किसी किनारे कोने में
 या फिर उड़ जाउं नीलगगन
 ढूंढ पायेगा फिर मुझे कैसे
 पर नहीं…
 सोच लिया है अब मैने भी
 अब बस….
 ये दर्द दर्द और दर्द बस
 खत्म हो ही जायेगा भीतर से
 और एक नयी चमकती दमकती
 तपी कुंदन सी निकलूंगी “मैं”

         शक्ल गर मेरी बदल गयी है
 सूरत तुम्हारी भी अलग होगी
 ये वक्त कब किसका सगा हुआ है
 मुझको घेरा है तुझको भी समेटा होगा
 तेरे मन वो फूल से लम्हें निहाँ है
 मेरे मन में भी उनकी याद बाक़ी है
 ये जो चली है धूल भरी तूफानी हवा
 उसका कुछ निशाँ तो उनपे तारी है
 चल ज़रा वक्त से सौदा कर ले अब
 वो थमे तो हम भी कुछ बदल जाएँ.


Ahamad faraz ke best Ghazals

hindi sad ghazals

बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गये; 
 कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये; 
 करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला; 
 यही है रस्म-ए-ज़माना तो हम भी अब के गये; 
 मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना; 
 ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये; 
 अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये; 
 ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये; 
 गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारा; 
 गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये; 
 तुम अपनी शम-ए-तमन्ना को रो रहे हो फ़राज़; 
 इन आँधियों मे तो प्यार-ए-चिराग सब के गये। 
     ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे​;​ 
 ​तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे​;​​​ 
 ​​​​अपने ही साये से हर कदम लरज़ जाता हूँ​;​ 
 ​रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे​;​ 
 ​​​​कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे​;​ 
 ​याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे​;​ 
 ​​मंज़िलें दूर भी हैं, मंज़िलें नज़दीक भी हैं​;​ 
 ​अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे​;​ 
 ​​​​आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं ‘फ़राज़’​; 
 ​चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे। 

     यूँ तुझे ढूँढने निकले की ना आये खुद भी, 
 वो मुसाफ़िर की जो मंजिल थे बजाये खुद भी, 
 कितने ग़म थे की ज़माने से छुपा रक्खे थे, 
 इस तरह से की हमें याद ना आये खुद भी, 
 ऐसा ज़ालिम की अगर ज़िक्र में उसके कोई ज़ुल्म, 
 हमसे रह जाए तो वो याद दिलाये ख़ुद भी, 
 लुत्फ़ तो जब है ताल्लुक में की वो शहर-ए-जमाल, 
 कभी खींचे, कभी खींचता चला आये खुद भी, 
 ऐसा साक़ी हो तो फिर देखिये रंग-ए-महफ़िल, 
 सबको मदहोश करे होश से जाए खुद भी, 
 यार से हमको तग़ाफ़ुल का गिला क्यूँ हो के हम, 
 बारहाँ महफ़िल-ए-जानां से उठ आये खुद भी… 
       करूँ ना याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे; 
 गज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे; 
 वो ख़ार-ख़ार है शाख-ए-गुलाब की मानिंद; 
 मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे; 
 ये लोग तज़किरे करते हैं अपने प्यारों के; 
 मैं किससे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे; 
 जो हमसफ़र सरे मंज़िल बिछड़ रहा है फ़राज़; 
 अजब नहीं है अगर याद भी न आऊँ उसे। 
      बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये; 
 कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये; 
 करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला; 
 यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये; 
 मगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जाना; 
 ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये; 
 अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिए; 
 ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये; 
 गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारा; 
 गिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गये; 
 तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो फ़राज़; 
 इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये। 

   कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो; 
 बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो; 
 तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है; 
 ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो; 
 नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं; 
 बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो; 
 ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है; 
 किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो; 
 तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जाना हमें भी करना है; 
 फ़राज़ तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो। 
     जो भी दुख याद न था याद आया; 
 आज क्या जानिए क्या याद आया; 
 याद आया था बिछड़ना तेरा; 
 फिर नहीं याद कि क्या याद आया; 
 हाथ उठाए था कि दिल बैठ गया; 
 जाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आया; 
 जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल; 
 इक इक नक़्श तेरा याद आया; 
 ये मोहब्बत भी है क्या रोग फ़राज़; 
 जिसको भूले वो सदा याद आया। 
    जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना, 
 मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना, 
 ये शोलगी हो बदन की तो क्या किया जाये, 
 सो लाजमी है तेरे पैरहन का जल जाना, 
 तुम्हीं करो कोई दरमाँ, ये वक्त आ पहुँचा, 
 कि अब तो चारागरों का भी हाथ मल जाना, 
 अभी अभी जो जुदाई की शाम आई थी, 
 हमें अजीब लगा ज़िन्दगी का ढल जाना, 
 सजी सजाई हुई मौत ज़िन्दगी तो नहीं, 
 मुअर्रिखों ने मकाबिर को भी महल जाना, 
 ये क्या कि तू भी इसी साअते-जवाल में है, 
 कि जिस तरह है सभी सूरजों को ढल जाना, 
 हर इक इश्क के बाद और उसके इश्क के बाद, 
 फ़राज़ इतना आसाँ भी ना था संभल जाना.. 

Basheer badra me heart touching Ghazals


मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा 
 खाक जब खाक में मिल जाऐगी तब पूछेगा 
 घर बसाने में ये खतरा है कि घर का मालिक 
 रात में देर से आने का सबब पूछेगा 
 अपना गम सबको बताना है तमाशा करना, 
 हाल-ऐ- दिल उसको सुनाएँगे वो जब पूछेगा 
 जब बिछडना भी तो हँसते हुए जाना वरना, 
 हर कोई रुठ जाने का सबब पूछेगा 
 हमने लफजों के जहाँ दाम लगे बेच दिया, 
 शेर पूछेगा हमें अब न अदब पूछेगा 
     साये उतरे, पंछी लौटे , बादल भी छुपने वाला है, 
 लेकिन मैं वो टूटा तारा, जो घर से जाने वाला है, 
 फिर सुबह हुई आँखें खोलें , कपड़ें बदले , फीते बांधे, 
 उस शहर के बारे में सोचे , जो शहर अब आने वाला है, 
 कल शब एक वीरा मसजिद में उसने मेरे आँसू पोंछे, 
 जो सबकी सूखी शाखों पर फूल खिलाने वाला है, 
 दिल के ये दोनों दरवाजे कभी नहीं बे-नूर हुए, 
 सदियों से इस उजड़े घर में , एक दीया जलाने वाला है, 
 मैं वो शबनम , जो फूलों की आँखों में रहे और ये सोचे, 
 ऐसा लगता है , जैसे अब सब हाथ से जाने वाला है, 
 हम रेत के जलते जर्रे को ये धूप ही चमकाए वरना, 
 दर्या कतराने वाला है, बादल तरसाने वाला है, 
 जुगनू चमके, तो मैं चौकू , तारा निकले , तो मैं सह्मू, 
 जैसे हर कोई मेरे ही घर आग लगाने वाला है, 
 जिस छप्पर के नीचे गावों के बूढ़े हुक्का पीते हैं, 
 उस छत पे एक पागल लड़का अब आग लगाने वाला है, 
 जिस आईने को पर्स में तुम रखे फिरते थे, टूट गया, 
 ये धूप की शीशा आँखों पर नेज़े चमकाने वाला है. 
      
आंसुओं से धूलि ख़ुशी कि तरह 
 रिश्ते होते है शायरी कि तरह 
 हम खुदा बन के आयेंगे वरना 
 हम से मिल जाओ आदमी कि तरह 
 बर्फ सीने कि जैसे - जैसे गली 
 आँख खुलती गयी कली कि तरह 
 जब कभी बादलों में घिरता हैं 
 चाँद लगता है आदमी कि तरह 
 किसी रोज़ किसी दरीचे से 
 सामने आओ रोशनी कि तरह 
 सब नज़र का फरेब है वरना 
 कोई होता नहीं किसी कि तरह 
 ख़ूबसूरत उदास ख़ौफ़ज़दा 
 वोह भी है बीसवीं सदी कि तरह 
 जानता हूँ कि एक दिन मुझको 
 वो बदल देगा डायरी कि तरह 
      
 मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है 
 मगर उसने मुझे चाहा बहुत है 
 खुदा इस शहर को महफूज़ रखे 
 ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है 
 मै तुझसे रोज़ मिलना चाहता हूँ 
 मगर इस राह में खतरा बहुत है 
 मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा 
 ये बच्चा रात में रोता बहुत है 
 इसे आंसू का एक कतरा न समझो 
 कुँआ है और ये गहरा बहुत है 
 उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है 
 समंदर है मगर प्यासा बहुत है 
 मै एक लम्हे में सदियाँ देखता हूँ 
 तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है 
 मेरा हँसना ज़रूरी हो गया है 
 यहाँ हर शख्स संजीदा बहुत है 
        
     मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला 
 अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला 
 घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे 
 बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला 
 तमाम रिश्तों को मैं, घर में छोड़ आया था 
 फिर इसके बाद मुझे, कोई अजनबी न मिला 
 ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने 
 बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वही न मिला 
 बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी 
 वो मेरे साथ रहा, और मुझे कभी न मिला 
          अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा 
 मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा 
 तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा 
 मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा 
 ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो 
 मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा 
 मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ 
 अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा 
 तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है 
 तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा 
         होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते 
 साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते। 
 पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी 
 आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते। 
 दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है 
 अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते। 
 उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में 
 फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते। 
 इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह है 
 ये आग लगाते है बुझाने नहीं आते। 
 क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली में 
 जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते। 
 अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये है 
 आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते। 
      यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
 वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो

 कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
 ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो

 अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा, कोई जाएगा
 तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो

 मुझे इश्तिहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां
 जो कहा नहीं, वो सुना करो, जो सुना नहीं, वो कहा करो

 ये ख़िज़ां की ज़र्द-सी शाल में, जो उदास पेड़ के पास है
 ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो


     वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
 बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

 उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
 तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है

 कहा से आई ये खुशबू ये घर की खुशबू है
 इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है

 महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
 ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है

 उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
 उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

 तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
 वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है

     आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा
 कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा

 बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे
 इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

 जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
 आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

 ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
 तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा

 पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
 मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा

      परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
 किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

 बडे लोगो से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
 जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

 हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
 अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता

 तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
 हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

 मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
 कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता

 कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
 ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

 लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में,
 तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में,
 और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में,
 मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में,
 हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं,
 उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में,
 फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती,
 कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में,
 दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी,
 कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में.
Best 100 ghazal in Hindi heart touching hindi ghazal Best 100 ghazal in Hindi heart touching hindi ghazal Reviewed by Ramesh on April 10, 2018 Rating: 5

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